राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत भभुआ में स्वास्थ्य शिविर में 153 बच्चों में बोली, समझ और गति में देरी की समस्या बताई गई। मोबाइल के इस्तेमाल के कारण यह समस्या बढ़ रही है। बच्चों के लिए …
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत स्कूल एवं शैक्षणिक संस्थानों में स्वास्थ्य शिविर में की गई जांच से हुआ खुलासा वित्तीय वर्ष 2023-24 में 153 एवं 2024-25 में अगस्त 21 तक चाइल्ड मिले कोऑर्डिनेटर, मोबाइल देखने की प्रवृत्ति से बच्चों में बढ़ रही बढ़ोतरी है परेशानी भभुआ, ऑफिस डायरेक्टर। कैमूर के कुछ ऐसे बच्चे हैं, जिनमें बोलना, इशारा करना शामिल है। इसका खुलासा विश्विद्यालय में आयोजित शिविर में चिकित्सक द्वारा बच्चों की स्वास्थ्य जांच की गई है। इसकी पुष्टि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के जिला प्रबंधक सह समन्वयक डॉ. सरोज कुमार ने भी की है. उन्होंने बताया कि उक्त समस्या का सामना करने वाले 153 बच्चों को वित्तीय वर्ष 2023-24 में आरंभ किया गया था। जबकि वित्तीय वर्ष 2024-25 अप्रैल से अगस्त माह तक 21 बच्चे मिले हैं। उन्होंने बताया कि मोबाइल देखने की प्रवृत्ति से भी यह समस्या बढ़ रही है। बच्चों को मोबाइल से गाना सुनाने, रोने पर चुप रहने के लिए शो के कारण बच्चों में ऐसी परेशानियां आ रही हैं। बच्चों में मोबाइल देखने की आदत नहीं है, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि कैंप में बच्चों को जरूरत के अनुसार दवा दी जा रही है। गंभीर बच्चों के इलाज के लिए भभुआ के सदर अस्पताल व पटना में रेफर किया जाता है। डॉ. सरोजोहा के अनुसार, चालू वित्त वर्ष 2024-25 में अप्रैल व मई माह में दो, जून में एक, जुलाई में पांच, अगस्त में 13 वैसे ही बच्चे बताए गए हैं, जो देर से बोल, समझ व चल पा रहे हैं। इनमें से प्रत्येक विकास की प्रतिकृति को वैज्ञानिक बनाना आवश्यक है। ग्रुप को जॉइन करने से ही अपनी सेहत का ख्याल रखना जरूरी है। पेट में पल रहे बच्चे का विकास गर्भवती महिला के आहार पर प्रतिबंध है। थोड़ा-थोड़ा और समय से पहले माइक्रोआहार और भोजन लेना चाहिए, ताकि बच्चे पर गर्भाधान का दबाव न पड़े। गर्भवती के खान-पान पर ध्यान देना जरूरी है जब मां गर्भावस्था में होती है, तब शिशु आहार अपनी मां के शरीर से मिलता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को व्यावसायिक आहार लेना आवश्यक है। इससे स्वस्थ बच्चे का जन्म होता है। व्यावसायिक आहार नहीं लेने से महिलाओं में खून की कमी रहती है। बच्चों को लाड-प्यार से मिलने की इच्छा होती है, जिससे उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। इन बातों का रखें ध्यान के लिए दबाव नहीं देना, जगत का अवसर देना, उनमें विश्वास पैदा करना, मेलजोल की तलाश करना जरूरी है। बच्चों को चार महीने की उम्र में केसी की बनी हुई सब्जियों को मसल कर खिलाना चाहिए। छह माह पर उसे जैसी चीज खिलानी चाहिए। दो साल तक नियमित मां का दूध पिलाते रहें। कम पड़े तो गाय या बकरी का दूध पिलाएं। बच्चा बीमार रह रहा है, तो भी माँ का दूध पीते हैं। जन्म के तुरंत बाद बच्चे को दूध पिलाया जाता है। जिला समन्वयक ने बताया कि बच्चों का इलाज करने के बजाय बच्चों का इलाज करने के लिए कौन से रोग होने चाहिए। डॉक्टर की राय पर सही सलामत और दवाएँ। भोजन में अधिक तेल, घी, काली मिर्च एवं अन्य का उपयोग न करें। आहार उद्योग और शीघ्र पचने वाला हो। पीलिया रोग होने पर बहुत से लोग प्यासे के चक्कर में फँस जाते हैं। कोट कैमूर जिले के कुछ बच्चों की बात, इशारा, गति में देर हो रही है। इसे हम ग्लोबल ग्लोबल डिले कहते हैं। बच्चों में मोबाइल देखने की प्रवृत्ति से ये बढ़ रही है समस्या। डॉ. सरोजोहा, जिला समन्वय, आरबीएसके फोटो- 21 सितंबर भभुआ- 1 कुमार सर्किट- सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में शनिवार को विभिन्न रोग से पीड़ित भर्ती कक्ष।