ओवैसी की AIMIM को साथ लें या नहीं? लालू के सामने सवाल
लालू यादव की पार्टी की नींव यादव और मुस्लिम वोटरों पर टिकी है. जबकि ओवैसी की पकड़ मुस्लिम इलाकों में मजबूत होती जा रही है. अगर एआईएमआईएम को साथ लिया गया, तो मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा लालू को छोड़ ओवैसी के खाते में जा सकता है. ये सियासी जोखिम लालू या तेजस्वी शायद न लेना चाहें.
ओवैसी ने बिहार में 18 उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से 14 सीमांचल में थे. इनमें से 5 ने जीत दर्ज की. अमौर, बायसी, कोचाधामन, बहादुरगंज और जोकीहाट में पार्टी ने कब्जा जमाया. ये नतीजे यह दिखाने के लिए काफी थे कि एआईएमआईएम अब सीमांचल की सियासत में ‘सीरियस प्लेयर’ बन चुकी है.
बीजेपी की ‘बी-टीम’ होने का शक
अब फिर से ओवैसी दरवाजा खटखटा रहे हैं. लेकिन आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने दो टूक कहा, ‘एआईएमआईएम भाजपा की बी-टीम की तरह काम करती है.’ उन्होंने कहा कि फैसला लालू और तेजस्वी लेंगे, लेकिन बिहार में इस बार कोई वोट बंटवारा नहीं होगा. तेजस्वी की लहर सब पर भारी पड़ेगी.
पठान का कहना है कि पार्टी का मकसद सिर्फ भाजपा को हराना है और सेक्युलर वोटों का बंटवारा रोकना है. अगर आम आदमी पार्टी लड़े तो कोई सवाल नहीं पूछता, लेकिन एआईएमआईएम को लेकर हर बार अंगुली उठाई जाती है.
लालू अगर नहीं माने तो…
अगर लालू यादव ओवैसी का प्रस्ताव ठुकरा दें तो? वारिस पठान साफ कहते हैं, ‘अगर गठबंधन नहीं होता, तब भी हम चुनाव लड़ेंगे. कोई हमें रोक नहीं सकता.’ उन्होंने संकेत दिया कि पार्टी अब सिर्फ मुस्लिम चेहरों तक सीमित नहीं रहेगी. पार्टी ने पूर्वी चंपारण की ढाका सीट से राजपूत नेता राणा रंजीत को उम्मीदवार बनाया है. और भी गैर-मुस्लिम उम्मीदवार जल्द सामने आ सकते हैं.
सीमांचल से बाहर भी एआईएमआईएम ने जोर लगाना शुरू कर दिया है. पार्टी अब बाढ़, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, पलायन और मानव तस्करी जैसे मुद्दों को उठाने लगी है. खासकर उन इलाकों में, जहां अब तक कोई ध्यान नहीं देता था.