समाज की बेरुखी से आत्महत्या की कोशिश तक, ऐसी है ट्रांसजेंडर दिव्या की कहानी, बेड़ियाें को तोड़कर बनी सिपाही

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पटना. समाज की बेड़ियों, परिवार की दूरी और तानों से भरे जीवन को पीछे छोड़ते हुए ट्रांसजेंडर दिव्या ओझा ने न केवल अपने सपने को पूरा किया, बल्कि पूरे समुदाय के लिए उम्मीद की किरण बन गई हैं. बीते दिनों CSBC द्वारा जारी 21,391 सिपाही पदों के परीक्षा के रिजल्ट में दिव्या का नाम भी शामिल है. इस बार 11 हजार से ज्यादा महिलाओं के साथ 8 ट्रांसजेंडर्स ने भी सफलता हासिल की है. इसमें एक नाम गोपालगंज की दिव्या ओझा का भी है.

बचपन से थी वर्दी पहनने की चाह

लोकल 18 से खास बातचीत में दिव्या ने भावुक होते हुए बताया कि बचपन से ही वर्दी पहनने का सपना था. समाज में अपनी अलग पहचान बनानी थी. ट्रांसजेंडर्स को लोग सिर्फ भीख मांगने या देह व्यापार के लिए देखते हैं. मैं इस सोच को तोड़ना चाहती थी. जब भगवान ने मुझे हाथ-पैर सबकुछ सही-सलामत दिया है, तो फिर मैं आम लोगों की तरह क्यों ना जिऊं? पिछले चार-पांच सालों से दिव्या पटना में रहकर कठिन परिश्रम कर रही थीं और आज उनकी मेहनत रंग लाई है. दिव्या आगे बताती हैं कि मैं रोज यही सोचती थी कि कभी तो वह दिन आएगा, जब मैं कुछ अच्छा करके दिखाऊंगी. आज आखिरकार वह दिन आ गया, जब मेरा सिलेक्शन बिहार पुलिस सिपाही पद के लिए हुआ है. आज मैं खुद को बहुत खुशकिस्मत महसूस कर रही हूं.

गुरु रहमान बने भगवान का रूप

दिव्या अपनी सफलता का श्रेय चर्चित शिक्षक गुरु रहमान को देती हैं. उन्होंने बताया कि जितना मेरे पिता ने मेरे लिए नहीं किया, उतना गुरु रहमान सर ने किया है. दिव्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी धन्यवाद देती हैं, जिन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए बहुत बड़ा काम किया है.

संघर्षों से भरा रहा है सफर

सिपाही बनने तक के अपने सफर को याद कर दिव्या लोकल 18 के कैमरे के सामने भावुक हो उठी. गोपालगंज की रहने वाली दिव्या ओझा का सफर चुनौतियों से भरा रहा है. अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए उनकी आंखों से आंसू भी टपकने लगे. उन्होंने बताया कि बचपन से ही ‘छक्का’, ‘हिजड़ा’ जैसे तानों के बीच मेरा पालन पोषण हुआ. हमेशा सोचती थी कि हम दूसरों की खुशी में ताली क्यों बजाएं, कुछ ऐसा करें कि लोग हमारी खुशी में ताली बजाएं. आज वही दिन है जब लोग मेरी सफलता पर तालियां बजा रहे हैं.

परिवार की बेरुखी और आत्महत्या के ख्याल

दिव्या बताती हैं कि उनके पिता कभी बात नहीं करते थे, लेकिन मां से कुछ हद तक बातचीत होती थी. एक वक्त ऐसा भी आया जब दिव्या अपना घर परिवार को छोड़ अपने सपनों के पीछे चल पड़ी. लेकिन यह सफर आसान नहीं था. पटना आकर, वह पांच दिनों तक पटना जंक्शन पर पॉलिथीन के सहारे लावारिस हालत में रहीं. इसी दौरान, कुछ असामाजिक तत्वों ने दिव्या की सुंदरता का नाजायज फायदा उठाने की कोशिश की और उसे बदनाम मंडी तक पहुंचा दिया. हालांकि, दिव्या ने हिम्मत नहीं हारी और वहां से भागने में सफल रहीं.

दिव्या की उपलब्धि पर भावुक हुए पिता

इन पलों को याद कर दिव्या बताती हैं कि पटना की सड़कों पर भटकती रहती थीं. कभी कभी तो जिंदगी से हार मानने का ख्याल भी आया. ऐसा लगता था कि इस नरक भरी जिंदगी को खत्म कर लूं, लेकिन फिर खुद से कहती थी कि जरूर कोई मिलेगा जो मुझे मेरी मंजिल तक पहुंचाएगा. इसी दौरान रहमान सर से मुलाकात हो गई. आज जब दिव्या का रिजल्ट आया, तो उनके पिता भी भावुक हो गए. दिव्या के एक इंटरव्यू वीडियो में उन्होंने कमेंट कर अपनी खुशी जाहिर की. इसे दिव्या ने अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना.

ट्रांसजेंडर्स को रहमान सर ने फ्री में पढ़ाया

जब पटना के कई कोचिंग संस्थानों ने ट्रांसजेंडर दिव्या को एडमिशन देने से इनकार कर दिया, यह कहकर कि इनसे क्लास का माहौल खराब होगा, तब गुरु रहमान ने न केवल इन्हें फ्री में पढ़ाया, बल्कि उन्हें सिपाही भी बनाया. सिर्फ दिव्या को ही नहीं बल्कि दिव्या के समुदाय के कई लोगों को गुरु रहमान ने फ्री में पढ़ाया. रहमान सर ने लोकल 18 को बताया कि इस बार 8 ट्रांसजेंडर्स को मैंने सिपाही बनाया है. पिछली बार दरोगा में भी कई लोग सफल हुए हैं. मैं आज भी कहता हूं कि ट्रांसजेंडर समुदाय के हर सदस्य को मैं फ्री में पढ़ाऊंगा और उन्हें उनके मुकाम तक पहुंचाऊंगा.

दिव्या कहती हैं कि आज जो खुशी मुझे मिली है, उसके आगे ऐसा लग रहा है कि मैं अपने पुराने सभी संघर्षों को भूल चुकी हूं. ऐसा लगता है जैसे आज से मेरी नई ज़िंदगी शुरू हो गई है. आज मुझे इतनी खुशी है कि मैं उन पुराने दिनों को याद भी नहीं करना चाहती.



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