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Bihar Chunav: तेजस्वी यादव ने ताड़ी व्यवसाय को उद्योग का दर्जा देने का वादा किया है, जबकि प्रशांत किशोर ने शराबबंदी खत्म करने का ऐलान किया है. दोनों नेताओं की रणनीतियां क्या बिहार चुनाव पर केंद्रित है?
ताड़ी और शराब पर प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव आमने-सामने.
हाइलाइट्स
- तेजस्वी ने ताड़ी को उद्योग का दर्जा देने का वादा किया.
- प्रशांत किशोर ने शराबबंदी खत्म करने का ऐलान किया.
- तेजस्वी की ताड़ी पॉलिटिक्स दलित और EBC वोटरों पर केंद्रित.
पटना. आरजेडी के सीएम फेस तेजस्वी यादव ने रविवार को बड़ा ऐलान किया है. बिहार चुनाव में वोटरों को रिझाने के लिए तेजस्वी ने एक ऐसा दांव फेंका है, जो जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर पहले से आजमाते आ रहे हैं. तेजस्वी यादव ने राज्य में ताड़ी व्यवसाय से जुड़े लोगों को लुभाने के लिए बड़ा ऐलान करते हुए इसे उद्योग का दर्जा देने का वादा किया है. साथ ही ताड़ी बेचने पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने का वादा किया है. प्रशांत किशोर भी राज्य में ‘शराब पॉलिटिक्स’ के जरिए इस तरह की वादे कर रहे हैं. पीके लगातार बोल रहे हैं कि अगर मेरी पार्टी की सरकार बनती है तो एक घंटे के अंदर बिहार में शराबबंदी कानून को समाप्त कर देंगे. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि ताड़ी को लेकर लालू यादाव का 30 साल पुराना फॉर्मूला क्या तेजस्वी यादव को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाएगा? क्या प्रशांत किशोर की शराब पॉलिटिक्स इसमें तेजस्वी के पॉलिटिक्स को नुकसान पहुंचेगा?
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार मुद्दों की गाड़ी में ताड़ी और शराब की सवारी सबसे ज्यादा चर्चा में रहेगी. तेजस्वी यादव ने ताड़ी को शराबबंदी कानून से बाहर करने का ऐलान कर एनडीए के बड़े वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश शुरू कर दी है. क्योंकि, ताड़ी से जुड़े व्यवसाय के ज्यादातर वोटर्स रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी से जुड़े रहे हैं. चिराग पासवान इस समय एनडीए में हैं, ऐसे में वह शराबबंदी कानून का विरोध नहीं कर सकते हैं. इस लिहाज से इस वोट बैंक पर प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज और आरजेडी में घमासान मचना तय माना जा रहा है.
ताड़ी और शराब पर ‘पीके’ और तेजस्वी आमने-सामने
ताड़ी, ताड़ के पेड़ के रस से बनने वाला पारंपरिक पेय है, बिहार के गांवों में खासकर दलित और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) में यह पेय पदार्थ काफी लोकप्रिय है. तेजस्वी की नजर अब इस वर्ग को साधने पर पड़ गई है. तेजस्वी का दावा है कि शराबबंदी कानून के तहत राज्य में अब तक 12.80 लाख से ज्यादा लोग जेल गए हैं, जिनमें 99% दलित और अति पिछड़ा समाज से हैं. ताड़ी पर प्रतिबंध को हटाने की मांग के जरिए वे इन समुदायों को यह संदेश दे रहे हैं कि आरजेडी उनके हितों की रक्षा करेगी.
लालू यादव का 30 साल पुराना फॉर्मूला
तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद यादव ने भी अपने शासनकाल में ताड़ी पर टैक्स माफ किया था. तेजस्वी इस इतिहास को दोहराकर गांवों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का दावा कर रहे हैं, जिससे रोजगार और राजस्व दोनों बढ़ सकते हैं. लेकिन नीतीश कुमार ने राज्य में 2016 से शराबबंदी लागू कर रखी है. ऐसे में तेजस्वी ताड़ी को शराबबंदी से अलग करने की मांग के जरिए वे नीतीश की नीति की खामियों को उजागर कर रहे हैं.
तेजस्वी की यह रणनीति RJD के पारंपरिक MY (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक से आगे बढ़कर दलित और EBC समुदायों को जोड़ने की कोशिश है. वहीं, प्रशांत किशोर ने राज्य से शराबबंदी को पूरी तरह खत्म करने का वादा किया है. जहां तेजस्वी सिर्फ ताड़ी को शराबबंदी से बाहर करने की बात कर रहे हैं, वहीं प्रशांत किशोर ने कहा है कि उनकी सरकार एक घंटे में शराबबंदी कानून को खत्म कर देगी. पीके के इस ऐलान का गांवों के साथ-साथ शहरी मतदाताओं का अच्छा-खासा समर्थन मिल रहा है. दोनों नेताओं की रणनीतियां शराबबंदी के मुद्दे पर केंद्रित हैं, लेकिन उनके दृष्टिकोण, लक्ष्य और प्रभाव में अंतर स्पष्ट है. तेजस्वी की ताड़ी पॉलिटिक्स दलित और EBC वोटरों पर केंद्रित है, जो ग्रामीण बिहार में आरजेडी का आधार बढ़ा सकती है. दूसरी ओर, प्रशांत किशोर की शराबबंदी खत्म करने की बात शहरी और प्रबुद्ध वर्ग को ज्यादा आकर्षित करती है, जो उनकी पार्टी को एक नया वोट बैंक दे सकती है.