अंदर की शक्तियों को जागृत करने का दिन

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नवरात्रि के पर्व में हम अपने अंतर्मन में उस पराशक्ति के साथ एकाकार होने का प्रयास करते हैं, जिससे हमारी मूल प्रकृति यानी यह मन, पदार्थ और भौतिक जगत उत्पन्न होता है। वह मूल आद्या शक्ति, पराशक्ति की ओर अपनी अंतर्यात्रा को प्राप्त करें, यही नवरात्रि का यह विशिष्ट आध्यात्मिक अनुष्ठान का लक्ष्य है।

इस संसार रूपी दुर्ग को जो शक्ति बनाये, चलाए, नष्ट करे, उस शक्ति का नाम दुर्गा है। जिस शक्ति से शरीर, मन और प्रकृति बनी है, जीवित हैं, मिलते हैं, उस शक्ति का नाम दुर्गा है। देवी दुर्गा की आठ भुजाओं में आठ शस्त्र और मुद्राएँ हैं। माँ दुर्गा के प्रथम हाथ की मुद्रा का आशीर्वाद मिलता है। यह मुद्रा प्रशिक्षक को शेयर धारकों के लिए चिंता का विषय है। एक हाथ में कमल है, कमल आनंद की निशानी है। एक हाथ में शंख है, शंख का मतलब ज्ञान होता है। एक हाथ में त्रिशूल यानि तीन गुण है। सत्व, रजो और तमो गुण वह एक पर आश्रित हैं। एक हाथ में धनु है,धनुष अर्थात दबाव डालना। सामूहिक आत्म पर होना चाहिए यानी आत्म अनुसंधान होना चाहिए।

दुर्गा के हाथ में तलवार है, तलवार विवेक का प्रतीक है। दुर्गा के हाथ में है भला। भाला प्रतीक है, धारणा और एकाग्रता का। इसी एकाग्रता की शक्ति से जब देवी राक्षसों को मारने के लिए रौद्र रूप धारण करती है तो उसका नाम काली है। जब आशीर्वाद है तो उसका नाम मंगला है। जब आपकी हर चीज उत्पन्न होती है तो वह देवी कुष्मांडा होती है। कार्तिकेय को जन्म देने वाली स्कंदमाता हैं। महिषासुर का वध करके सभी देवों की प्रार्थना करने पर रौद्र रूप में त्यागकर शांत हो गए, तो उनका ही नाम कात्यायनी हुआ।

किसी भी देवी-देवता की मूर्ति के रूप में वह पूजा करता है, किसी भी तीर्थ स्थान पर पूजा करता है, लेकिन मेरी दृष्टि में दुर्गा के बाहरी स्वरूप भी अलग-अलग हैं। हर स्त्री में दुर्गा है, हर कन्या में दुर्गा है, ज्ञान भी दुर्गा है, विज्ञान भी दुर्गा है, तंत्र भी दुर्गा है, जब और जहां भी हम सात्विक शक्तियों का अनुभव करते हैं, वही दुर्गा का रूप है। सत्य तो यह है कि कला, नृत्य, संगीत, चित्रकारी ये भी दुर्गा के राजसी स्वरूप कहे गए हैं। शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि सभी मसालों की मूल शक्ति यही है। यह शक्ति हम सभी के अंदर है। न केवल हमारे देह में बल्कि हमारे मन में, यहां तक ​​कि आत्मा में भी यही निहित है। शक्ति का कोई अपना निश्चित रूप-स्वरूप नहीं होता। यह शक्ति विभिन्न रूप-तरंगों में भी विशिष्ट है। वह निराकार भी है और साकार भी है अर्थात वह पदार्थ भी है और ऊर्जा भी है।

भौतिक विज्ञान के अनुसार पदार्थ और ऊर्जा दोनों अलग-अलग हैं। लेकिन तंत्र के अनुसार ये एक ही है। ऊर्जा का ही संसाधिक रूप है पदार्थ और पदार्थ का सूक्ष्म रूप है ऊर्जा। हम ऊर्जा के समान दिव्य परारूप को ‘शक्ति’ कहते हैं। देखा जाये तो मनुष्य का यह सामान्य जीवन भी शक्ति के बिना या अधूरा ही रहता है। अपनी भी एक शक्ति है. इसी शक्ति का प्रताप हम चाँद और सूरज में भी देखते हैं। मनुष्य, पशु-पक्षी, वृक्ष, पत्थर, पृथ्वी, सोना, चाँदी, पानी आदि सभी में एक ही शक्ति का प्रताप दिखता है। हम सब इसी शक्ति के ही व्यक्त रूप हैं, पर वह स्वयं अव्यक्त रूप है। हम इसी पराशक्ति को जननी के रूप में जानते हैं और हमारी जैविक माता के रूप में भी यही हमें दर्शन देते हैं।

योगियों ने इसी पराशक्ति को कुंडलिनी शक्ति कहा है, वैष्णवों ने ‘लक्ष्मी’ और शैवों ने ‘गौरी’ तथा ‘अंबा’ कहा है। यही शक्ति मनुष्य की देह में मूलाधार चक्र में स्थित है और समस्त ब्रह्माण्ड की रचनाकार भी है। देवी के त्रिरूप सृजनकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता का नवरात्रि के दिनों में विशेष पूजन किया जाता है। तंत्र में कहा गया है कि शक्ति मूलाधार में कुंडली का स्थान है। जब हम अपनी सुप्त शक्ति को जाग्रत करते हैं तो वह स्वाधिष्ठान, संकाय, अनाहत, आज्ञा चक्रों का भेदन करती हुई सहस्र तक पहुंचती है। जिस व्यक्ति का स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत हो गया, उसे विषय-वासना कभी नहीं बताई जा सकती। अगर वह अनाहत तक पहुंच गया तो इतना प्यार होने लगेगा कि हिंसक व्यक्ति भी संपर्क में आ जाएगा। यदि शुद्धि चक्र जाग्रत हो गया, तो वाणी की सिद्धि होगी। आज्ञा चक्र जाग्रत हो गया तो समस्त ज्ञान के द्वार प्रारंभ हो गए हैं। जब कुण्डलिनी जाग्रत अपने शिवरूप को जागृत करती है तो महानंद की अनुभूति होती है। अनुसंधान तुम करो और शक्ति जाग्रत करो।

अपने अंदर और बाहर इस पराशक्ति के साथ एकाकार हो जाने के लिए इस साधना-अनुष्ठान की ओर से बिजनेस करें। नवरात्रि वह पर्व है, जिसमें हम अपने अंतर्मन में विद्यमान उस परशक्ति के साथ एकाकार होने का प्रयास करते हैं। हमारी मूल प्रकृति अर्थात् यह मन, पदार्थ और भौतिक जगत उत्पन्न हुई है, वह मूल आद्या शक्ति, पराशक्ति की ओर से अपनी अन्तर्यात्रा को प्राप्त करती है, जिससे कि नवरात्रि के इस विशिष्ट आध्यात्मिक अनुष्ठान का लक्ष्य है।



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