अहिंसा का आचरण बनाता है श्रीसंपन्न और निरोगी

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अहिंसा प्रेम का पर्याय है और इसी अहिंसा प्रेम की पर्याय थी एक सहृदय नारी अंजना। जब उस निरपराध सती को उसकी सास केतुमती ने दोषी ठहराकर गर्भस्थ स्थिति में गहन जंगल में छुड़वा दिया, तब वह धैर्य की देवी; वात्सल्य मूर्ति अहिंसा का अवतार अंजना उस भीमाटवी में अहिंसा धर्म का आश्रय ले काल यापन करने लगी। जहां दिन में भी गहन अंधकार था। जहां जहरीले नागमणि विषधर अपने विकराल मुखों से विष उगल रहे थे। ऐसे विषधरों के भयानक जंगल में जहां हाथ-को-हाथ भी नहीं सूझ रहा था, वहां वह मंगलमूर्ति अंजना चली जा रही थी। उसने अनुभव किया उसके पैरों तले कोई गुदगुदीदार मुलायम वस्तु रेंग रही है। वह निर्भय थी—‘जब मेरे मन में किसी के प्रति द्वेष नहीं है, तब मेरे प्रति किसी को द्वेष क्यों होगा?’ ऐसी स्नेहपूर्ण भावना से आप्लावित वह सिद्धांतवेत्ता हर पल आगे बढ़ती जा रही थी। अचानक नागों ने अपने फन ऊपर की ओर उठाए। उनके मस्तक के चमकते मणि प्रकाश में उसने देखा कि मैं विषधरों के जंगल में हूं। वह किंचित भी भयभीत नहीं हुई और न ही विषधरों ने उसे किंचित भी कष्ट पहुंचाया। वनभूमि विषधरों से इतनी व्याप्त थी कि तिल मात्र रिक्त स्थान न होने के कारण उसे विषधरों पर पैर रखकर जाना पड़ा। वह विषधरों के बदन पर दयापूर्ण पैर रखती हुई जंगल पार कर गई। यह है दया, प्रेम और अहिंसापूर्ण भावों का संप्रेषण। जिनके अहिंसक भावों के समक्ष विषधर भी निर्विष हो गए।

अंजना के समान ऐसे अनेक प्रसंग मिलते हैं। शकुंतला जब अपने पति दुष्यंत द्वारा विस्मृत कर दी गई, तब वह भी जंगल में ऋषि आश्रम में जीवन बिता रही थी। तब क्रूर, हिंसक प्राणी मित्र बनकर उसके साथ रहते थे। सच है जब प्रेम, करुणा और अहिंसा का दायरा निस्सीम हो जाता है, तब ऐसी ही स्थिति निर्मित होती है।

वह प्रेम जो असीम हो, जो ‘सत्वेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदं’ का मधुर संगीत गुनगुनाता हो। सीमित प्रेम घृणा से अछूता नहीं रहता क्योंकि सीमित प्रेम के पीछे मिश्रित रूपेण घृणा की छाया चलती ही रहती है। जो कमल जल में उत्पन्न होता है, क्या वह आग से पैदा हो सकता है? अमृत से प्राप्त होनेवाला अमरत्व क्या विष से मिल सकेगा? यदि नहीं, तो क्या सीमायुक्त प्रेम से ग्रसित प्रेम अहिंसा का रूप ले सकता है? नहीं; कदापि नहीं।

अहिंसा के आचरण से मनुष्य दीर्घायुष्क, भाग्यशाली, श्रीमान, सुंदर रूपवान, कीर्तिमान, श्रीसंपन्न एवं कुलीन होता है। अहिंसा की प्रतिष्ठा से पर्याप्त बल एवं निरोग शरीर की प्राप्ति स्वत हो जाया करती है। जिसका हृदय प्रदेश अहिंसा से प्रक्षालित है, उसके कर तल में सुगति नामक रत्न विद्यमान है अर्थात उसकी सद्गति सुनिश्चित है।



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