हमारे अवचेतन मन के पीछे एक अधिचेतन मन भी है, जो कुछ नहीं भूलता। यह हमारे जीवनभर किए गए कर्मों का लेखा-जोखा रखता है। शरीर छोड़ने से पहले हमारे मन में ये सब विचार प्रकट हो जाते हैं। यह अधिचेतन मन ही हमारी अंतरात्मा है, जो ईश्वरीय वाणी के रूप में हमें गलत कार्यों को करते समय रोकने का प्रयास करती है।
अहम् के रूप में आपकी चेतना आपके अंदर प्रत्येक जगह विद्यमान है, और इसलिए उस प्रत्येक विचार जिसे आप सोचते हैं, में विद्यमान है। यदि आप अपनी चेतना को अहम् से परे अधिचेतना के राज्य में विस्तृत कर सकें, तो आप उस स्थान से उन समस्त हजारों विचारों का निरीक्षण कर सकते हैं, जो आपके चेतन मन से गुजर रहे हैं।
मन का कार्यक्षेत्र बहुत विशाल है। ईश्वर ने आपको जाग्रत चेतना, अवचेतना और अधिचेतना प्रदान की है। आपके चेतन मन की कुछ सीमाएं हैं; कुछ वर्षों के पश्चात यह अनेक वस्तुओं को भूलना आरंभ कर देता है। परंतु आपके अवचेतन मन की स्मरण शक्ति की क्षमता अधिक है; प्रत्येक विचार और अनुभव अवचेतना के भंडार में संचित है। आपका चेतन मन उस प्रत्येक शब्द को भूल सकता है, जिसे मैं कह रहा हूं, परंतु आपका अवचेतन मन उन सबको अंकित कर रहा है।
अवचेतन मन के पीछे आपका अधिचेतन मन है, जो कुछ नहीं भूलता। अधिचेतन मन ने प्रत्येक कार्य जो आपने किया है, प्रत्येक विचार जो आपने सोचा है, उन सबका लेखा-जोखा रखा है। जब मृत्यु आती है, आपके शरीर छोड़ने से पहले आपके मन में ये सब विचार और अनुभव प्रकट हो जाते हैं। जो अनुभव अत्यधिक शक्तिशाली होते हैं, वे आपके अगले जीवन की आदतों और वातावरण को निर्धारित करते हैं।
अहम् के रूप में आपकी चेतना आपके अंदर प्रत्येक जगह विद्यमान है और इसलिए उस प्रत्येक विचार जिसे आप सोचते हैं, में विद्यमान है। यदि आप अपनी चेतना को अहम् से परे अधिचेतना के राज्य में विस्तृत कर सकें, तो आप उस स्थान से उन समस्त हजारों विचारों का निरीक्षण कर सकते हैं, जो आपके चेतन मन से गुजर रहे हैं। जिन्होंने अधिचेतन मन को विकसित कर लिया है, वे इस जीवन-काल के समस्त विचारों को, और पिछले जन्मों के विचारों को भी याद कर सकते हैं। ईश्वरीय स्मृति में कुछ भी भूलता नहीं है। हमारे विचार वास्तविक हैं और वे शाश्वत हैं, आकाश में सदा विद्यमान हैं। आपके अधिचेतन मन में पृथ्वी की समस्त ध्वनियां भी अंकित हैं।
ईश्वर मनुष्य को एक मानसिक आड़ देते हैं, जिससे कि अन्य कोई व्यक्ति उसके विचारों को न जान सके। आप अपने विचारों के साथ अकेले हैं, भले ही आप अनेक लोगों के साथ भी हों। यहां तक कि जिनके पास कूटस्थ चेतना है, वे भी तब तक दूसरों के विचारों में प्रवेश नहीं करते, जब तक कि ईश्वर ने दूसरों का मार्गदर्शन करने हेतु उन्हें ऐसा करने के लिए आदेश न दिया हो या उनके भक्तों ने अपनी साधना में परिपूर्णता लाने के लिए ऐसी स्वतंत्रता के लिए उनसे प्रार्थना न की हो।
यदि आप कूटस्थ चेतना विकसित करना चाहते हैं, तो सहानुभूतिशील बनना सीखें। जब दूसरों के लिए आपके हृदय में विशुद्ध भाव आते हैं, तब आप उस महान चेतना को प्रकट करना आरंभ कर रहे हैं। जब आप दूसरों के प्रति निर्दयता से बात करते हैं, तो आप कूटस्थ चेतना की सर्वजनीन सहानुभूति से बहुत दूर हैं। भगवान कृष्ण ने कहा ‘वह सर्वोच्च योगी है, जो सभी मनुष्यों का समभाव के साथ सम्मान करता है।’ दूसरों की आलोचना करके अपनी जिह्वा और विचारों को कलुषित न करें। प्रत्येक व्यक्ति के साथ सच्चे रहें, और सर्वोपरि, अपने प्रति सच्चे बनें। ईश्वर आपको देख रहे हैं। आप उनको धोखा नहीं दे सकते।
ईश्वर आपके अंतरात्मा रूपी मंदिर में मंद ध्वनि हैं, और वे अंतरज्ञान का प्रकाश हैं। आप जानते हैं, जब आप गलत कार्य कर रहे होते हैं, आपकी संपूर्ण अंतरात्मा आपको बताती है, और यह अनुभूति ईश्वर की वाणी है। यदि आप उनको नहीं सुनते तो वे चुप हो जाते हैं। लेकिन जब आप भ्रम से जागें, और उचित कार्य करना चाहें, तब वे आपका मार्गदर्शन करेंगे। वे सदा उस समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं,जब आप उनके ‘घर’ वापस लौटेंगे। वे आपके अच्छे और बुरे कार्यों एवं विचारों को देखते हैं, परंतु इनका उनके लिए कोई महत्व नहीं है। आप उसी तरह उनकी संतान हैं।