हम लड़ने वाले गांधी को धोते हैं, ‘हमारे समय में विचार’ कार्यक्रम में बोले गांधीवादी विचार

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हम लोगों में गांधीजी से अहिंसा शुरू हो रही है और अहिंसा ही समाप्त हो रही है। हम लड़ने वाले गांधी को दिखाते हैं। गांधी ने दोनों विश्व युद्ध देखे हैं। क्रांतितम साम्राज्यवाद देखा है। सामुदायिक ख़ूबसूरती का अवलोकन। अपनी हत्या के पांच हमले देखें। इनका सीधा मुकाबला है। यह बात गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत ने वर्तमान साहित्य के वार्षिक कार्यक्रम ‘हमारे समय में विचार’ में कहा, जिसे पेरिस में कहा जाता है।

उर्दू हाउस के ऑडिटोरियम में आयोजित समारोह में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने ‘युद्ध के माहौल के बीच गांधी की जरूरत’ विषय पर विचार करते हुए कहा कि उस समय रेशम के चिप्स और डर का समाज नहीं था, पिछले दस वर्षों में कायर ने कहा था समाज बना है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा युद्ध 2024 में हुए, जिनमें सबसे ज्यादा शिकार करने वाले बच्चे हैं। उन्होंने कहा कि गांधीवाद जैसी कोई चीज़ नहीं है। केवल दिशा बनी है, वही हमें समझनी है। विचार ख़त्म नहीं होता, विचार समय के साथ बदलता रहता है। इसलिए जीना और जीना समाज बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

लेखक एवं विचारक नंद किशोर आचार्य डॉ. बौद्ध धर्म के इतिहास दर्शन से डेमोक्रेट। चौथे तारासप्तक के कवि नंद किशोर आचार्य ने वर्ग और वर्णों के बीच की संघर्ष गाथा बताई। उन्होंने कहा कि वर्ग और वर्ण का संबंध एकता से नहीं बल्कि एकता से है। सभी एक दूसरे पर मालिक हैं। जब तक समता नहीं है, अन्योन्यश्रिता नहीं है। कैथोलिक अन्योन्याश्रिता को देशभक्ति देते हैं। उन्होंने कहा कि गांधी जी के मार्ग पर चलकर ही संघर्ष का समाधान संभव है।

वरिष्ठ पत्रकार सईद नकवी ने देश-दुनिया में हो रही घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि किसी को इसकी फिक्र नहीं है। इसका सारा स्रोत ही बंद कर दिया गया है, जिसमें हमें जानकारी दी गई है। उन्होंने गाजा से लेकर इजराइल, रूस, जापानी, अमेरिका, फ्रांस और वियतनाम तक की कई घटनाओं को केंद्र में लेकर पूरे मीडिया लैंडस्केप, आर्केस्ट्रा और कार्पोरेट की भूमिका पर अपनी बात रखी।

मार्क्सवादी चिंतक रवि सिन्हा ने ‘मार्क्स: बीसवीं सदी का अनुभव और इक्कीसवीं सदी की मिसाल’ विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने बीज और फ़सल के रूप में विचार करते हुए कहा कि बीसवीं सदी में मार्क्सवाद का फ़सल, समाजवाद की उपज है। यह तथ्य है कि बीसवीं सदी में समाजवाद का जन्म हुआ और ख़त्म हो गया। इसके साथ ही रवि सिन्हा ने इक्कीसवीं सदी के चार प्रमुख उपन्यासों का वर्णन किया।

‘हिंदुत्व: हिंदुत्व से सनातन तक’ विषय पर सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि जब से मनुष्य है तब से सनातन की अवधारणा है। उन्होंने कहा कि सवाल हिंदुत्व का नहीं है, वर्तमान समय में इंसानियत और इंसानियत का है। यह हमारे देश को शाश्वत धारण वाली अवधारणा है।

इससे पहले विचार सत्यता के समय में विचार विषय का प्रस्ताव वर्तमान साहित्य के संस्थापक संपादक और उपन्यासकार विभूति नारायण राय ने रखा। उन्होंने गांधी जी के तप, त्याग और समानता के बारे में कहा कि बिना किसी बड़ी सोच और समानता के ऐसा संभव नहीं था। सबसे जरूरी बात सिद्धांतों के बीच सामंजस्य बिठाना है। सबसे बेहतर होगा कि उनमें संवाद स्थापित हो। इसी को ध्यान में रखते हुए यह सत्र रखा गया है। इस सत्र का संचालन वर्तमान साहित्य पत्रिका के संपादक संजय शास्त्री ने किया तो ज्ञानचंद बाग़ड़ी ने मज़ाक किया।

कृष्ण प्रताप कथा सम्मान से नवाजे गए किशुंक गुप्ता

समारोह के पहले सत्र में युवा कथाकार किशुंक गुप्ता को कृष्ण प्रताप कथा सम्मान 2023 से नवाजा गया। यह सम्मान ‘ये दिल है कि खोखला दरवाजा’ कहानी संग्रह के लिए दिया गया है। सम्मान समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मशहूर कवि और आलोचक अशोक सोलंकी ने किंशुक गुप्ता के बारे में चर्चा की। एक विषय विशेष का थप्पा लीच के खतरे को दर्शाया गया तो रचनाकार को उस विषय के साथ अनेकानेक विषय देखने और उठाने पर बल दिया गया। वरिष्ठ आलोचक आशुतोष कुमार ने कहानी संग्रह ‘ये दिल है कि चोर डोर’ की कहानियाँ प्रकाशित कीं। ऑपरेशन कर अमीर सोहा अक्कर्स ने अपने प्रतिष्ठित आदिवासियों से लोगों का ध्यान खींचा। इससे पहले लोगों का स्वागत करते हुए प्रियदर्शन ने कृष्ण प्रताप को मिले गैलरी जीवन और कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि जब भी वह पुलिस सेवा के लिए चुने जाते हैं तो किस तरह आप ऑपरेशन के दौरान अपने दल के सहयोगियों के हाथ ही मारे जाते हैं। इसके बाद चली लंबी कानूनी लड़ाई में किस तरह से कृष्ण प्रताप की पत्नी और उनकी बेटी को मुश्किल में पेश किया गया। पूरे समारोह में बड़ी संख्या में लोगों की भागीदारी रही।

रिपोर्ट:आयुव्ज़ प्रजापति



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