बिहार में अब सूर्योदय से नदियों की धारा की निगरानी होगी। जिन नदियों के बहाव की पढ़ाई होगी। और ये पता चला कि अचानक दिखने वाली नदियों के मुर्गों को काट दिया जाता है। जबति पैकेज में भी कई नदियों में पानी काफी कम रहता है। नदियों के दर्शनार्थियों को दर्शन में मदद मिलेगी।
राज्य में सूर्योदय से नदियों की धारा की निगरानी होगी। इसके तहत दवा अवधि के पहले और दवा अवधि के बाद नदियों के बहाव का अध्ययन किया जाएगा। जल संसाधन विभाग इसके लिए स्टॉक बना हुआ है। इसके तहत हर साल मचने वाली तबाही मचाने वाली नदियों के साथ-साथ प्रकृति का सहजता से अध्ययन किया जा सकता है। यूक्रेन, प्रदेश की नदियों में समुद्र तट से पानी आ रहा है। कभी इसकी मात्रा काफी कम हो जाती है तो कभी काफी बढ़ जाती है। कई क्षेत्रों में बहस अवधि में नदियों में पानी नहीं होता तो कई बार नदियों में अचानक खतरे के निशान से ऊपर पहुंच जाता है। एक ही जिले में नदियों का व्यवहार अलग-अलग दिख रहा है। इससे जल विशेषज्ञ भी हैरान हैं।
सबसे पुरानी बात तो यह है कि अमूमन सूखे रहने वाली नदियां भी मंदिरों को क्षतिग्रस्त कर रही हैं। इससे नए-नए यूरोप में बाढ़ का पानी फैल रहा है। इस समय राज्य की नदियों की धारा और पहाड़ों पर उसके बढ़ते दबाव के कारण कई तरह की समस्याएँ पैदा हो रही हैं। यही नहीं, बाद में आश्रमों के कवर में भी कई तरह की परेशानियां होती हैं। नादियाँ मूत्राशय अवधि में कई बार प्लास्टरों पर भारी दबाव स्थापित होता है। उसकी धारा में भी महर्षि होते हैं। इससे नए-नए आकर्षक स्थल विकसित हो रहे हैं। साथ ही प्राचीन संस्थाएं स्थानों को नुकसान पहुंचाते हैं।
विभाग का मानना है कि बाढ़ से पहले और बाद में नदियों की धारा के निरीक्षण से नदियों की प्रकृति के अध्ययन में सुविधा होगी। नदियाँ मूत्राशय अवधि में अपनी धाराएँ अलग-अलग होती हैं, कहाँ-कहाँ के मंदिरों पर दबाव का जन्म होता है, कहाँ-कहाँ के अवशेषों पर भारी दबाव का जन्म होता है, इन संरचनाओं की जानकारी सहज मिल जाएगी। डूब अध्ययन से यह सहजता से पता चलता है कि कौन-कौन से ऐसे स्थल हैं जहां हर साल दबाव उत्पन्न हो रहा है। या फिर कहीं नदियों की धारा हर साल दबाव पैदा होती है। इसके अलावा यह भी सहजता से देखा जा सकता है कि कहां-कहां नदियां अपनी धारा बदल रही हैं।
बिहार में हर साल औसतन 800 करोड़ रुपये का मासिक धर्म खर्च होता है। इसमें कमी आ सकती है। पिछले दस वर्षों में बाढ़ पूर्व की तैयारी के क्रम में मशालों की चढ़ाई और सुई के टुकड़ों को लगाने पर 8366 करोड़ रुपये खर्च हुए। इस पैसे से 10 साल में 3246 मिनिट पर काम किया गया। इन सबके बाद भी 55 जगह पर टूटे हुए टुकड़े हो गए। इससे जुड़े कई अन्य कार्य निर्थक हो गए।