बिहार में पंचायत से लेकर जमीन तक का मालिकाना हक रखने वाले लोगों की समस्याओं को देखते हुए सरकार ने संकेत दिया है कि जमीन का दस्तावेज जमा करने के लिए समय दिया जाएगा लेकिन जमीन का सर्वे करने का काम नहीं रुकेगा। बिहार भूमि सर्वेक्षण में लोगों को आ रही जमीन और मंदिरों के आक्षेपों के बाद संभावना जताई जा रही थी कि नीतीश कुमार की सरकार जमीन सर्वेक्षण के लिए कोई समय सीमा तय किए बिना धीरे-धीरे-धीरे-धीरे काम को आगे बढ़ाएगी। राज्य के भूमि सुधार मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के क्षेत्रीय अध्यक्ष दल ने शुक्रवार को कहा कि जमीन पर स्वामित्व के लिए खुद का घोषणा पत्र जमा करने और समय दिया जाएगा।
दिलीप फैमिली ने कहा- ”मेरे लोगों की स्टूडियो की समीक्षा है।” इसके लिए समय सीमा जुड़ेगी। कुछ दिन में सरकारी आदेश निकल जाएगा। हम चल रहे हैं काम की समीक्षा की और सब ठीक चल रहा है। पूरी तरह से संगठित होने का उद्देश्य यह है कि डिजिटल ज़मीन रिकॉर्ड के साथ लोगों के लिए ज़मीन का विवाद हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया जाए।” मंत्री ने हालांकि ये साफ कर दिया कि सरकार इसके पीछे नहीं है। उन्होंने कहा कि लैंड माफिया जान-सोचकर भ्रम और अफवाह फैला रहे हैं लेकिन वो काम नहीं करने वाले।
भिखारियों में महादलितों की बस्ती में जमीन पर कब्ज़ा करने के मकसद से दबंगों द्वारा की गई घटना के बाद मंत्री का अहम बयान है। इस बस्ती की जमीन पर कब्रगाह की जमीन सर्वे से पहले कब्जा कर लेना चाहते हैं ताकि इसे अपना दिखावटी सामान बनाया जा सके। हालाँकि, बौद्ध धर्म के शिक्षकों ने कहा है कि 1995 से इस जमीन के मालिकाना हक का मुकदमा अदालत में चल रहा है। कोर्ट ने जमीन की जांच का भी आदेश दिया क्योंकि इसका मालिक कौन है, ये साफा नहीं है। स्थानीय लोगों का कहना है कि ये सरकारी जमीन थी जहां किसी ने सरकारी अधिकारियों की मदद से अपना नाम करवा लिया होगा। लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि वो कौन है।
भूमि सुधार विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहा कि जमीन के मालिकाना हक को लेकर मोटरसाइकिल की खबर उन्होंने भी पढ़ी है जबकि कुछ लोग कुछ और बातें कर रहे हैं। सिंह ने छात्रों से बातचीत की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है और कहा है कि रिपोर्ट आने के बाद ही साफा होगा कि इस बार क्या स्थिति है। विस्फोट की घटना अलग तरह की है लेकिन ये आखिरी हो, ऐसा नहीं है। पूरे राज्य में सरकारी जमीन पर कब्जे और कब्जे की शिकायत है। ऐसे में जमीन के सर्वेक्षण से गैर कानूनी तरीकों से जमीन पर कब्जा कर लिया गया लोगों को बर्बाद और चटपटा कर दिया गया है। कई परिवारों में दादा या परदादा के नाम पर ही अलग-अलग समस्या है।
बिहार में बहुप्रतिक्षित भूमि सर्वेक्षण का लक्ष्य राज्य के लगभग 45 हजार जिलों में भूमि के रिकॉर्ड को डिजिटल किया जाना है। सरकार ने इसके लिए कहा है कि 25 जुलाई 2025 से कुछ महीने पहले किस विधानसभा में चुनाव की समय सीमा तय हो सकती है। यदि समय से पहले चुनाव कराया जाए तो यह प्रक्रिया चुनाव से पहले अधूरी भी रह सकती है।
जमीन के कागज तैयार करने में ग्राउंड लेवल पर कंक्रीट की कंक्रीट आ रही है, जिसके जवाब में सरकार डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जमीन के कागज तैयार करने की सुविधा का प्रचार कर रही है। लेकिन इस सुविधा का उपयोग जहां भी लोग कर सकते हैं, ये नहीं कहा जा सकता। नीतीश सरकार के नामांकन पर भूमि सर्वेक्षण में काफी समय लगा था। राज्य में जमीन का विवाद क्राइम का सबसे बड़ा कारण है, ये स्टूडेंटबी के आंकड़े से भी हुआ स्पष्ट। जमीनी विवाद को खत्म कर कानून-व्यवस्था को ठीक करना नीतीश का मकसद है। फ़ास्टबी के ताज़ा आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार में 60 प्रतिशत हत्याएं ज़मीन पर बर्बाद हो गई हैं।
एक उपभोक्ता ने कहा कि इस सर्वे से सरकार को भी राज्य में अपनी जमीन का खाता मिल जाएगा। सरकार को जमीन देनी चाहिए, जमीन के लिए बड़ी योजना बनानी चाहिए। जमीन में कागज के बिना जमीन की खरीद-फरोख्त मुश्किल है। नोएडा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि आने वाले दिनों में नॉटेड खुद जमीन सर्वेक्षक की समीक्षा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को भी वामपंथियों से मिलवाया जाएगा। ये तो पता था कि ये स्टोर है लेकिन बिहार में ये समय की मांग है. नोएडा नेताओं ने 2016 से बिहार में लागू शराबबंदी की वजह से सरकार के राजस्व में कमी का संकेत दिया है, सीएम ने कहा कि नीतीश इन बयानों से निबटने के लिए ही जाते हैं।