दूसरे पायदान पर महाराष्ट्र में 562 की मौत तथा 517 लोग जख्मी हुए। कर्नाटक में 504 की जान गई तो 243 लोग जख्मी हुए। बिहार में बिजली की चपेट में आने से 253 लोगों की जान गई तो आठ जख्मी हुए।
बिजली की चपेट में आने से बिहार में रोज जानमाल का नुकसान हो रहा है। औसतन एक की मौत हो रही है। इंसान के साथ जानवर भी बिजली की चपेट में आ रहे हैं। बिजली की चपेट में आकर मरने के मामले में बिहार देश में चौथे पायदान पर है। वैसे देश में सबसे अधिक उत्तरप्रदेश में बिजली की चपेट में आने से मौत हो रही है। यह बिहार की तुलना में चार गुना से भी अधिक है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण रिपोर्ट के अनुसार, देश में 14 हजार 318 लोग बिजली की चपेट में आए। इनमें 6154 लोगों की मौत हो गई, जबकि 2398 जख्मी हुए। वहीं 5728 जानवरों की जान चली गई। सबसे अधिक यूपी में 1325 लोगों की मौत, जबकि 487 जख्मी हो गए। दूसरे पायदान पर महाराष्ट्र में 562 की मौत तथा 517 लोग जख्मी हुए। कर्नाटक में 504 की जान गई तो 243 लोग जख्मी हुए। बिहार में बिजली की चपेट में आने से 253 लोगों की जान गई तो आठ जख्मी हुए।
बिजली के झटके से बिहार में जानवरों की मौत
कम करंट से जानवरों की भी मौत हो रही है। सबसे अधिक यूपी में 1979 जानवर, महाराष्ट्र में 1136, आंध्रप्रदेश में 238 जानवर, असम में 100, छत्तीसगढ़ में 146, गुजरात में 433, कर्नाटक में 745, केरल में 45, मध्यप्रदेश में 192, राजस्थान में 55, तामिलनाडु में 103, तेलंगाना में 163 और पश्चिम बंगाल में 52 जानवरों की मौत करंट से हो गई। बिहार में तीन जानवरों की मौत करंट से हुई।
औद्योगिक इकाइयों में भी जा रही है जान
औद्योगिक इकाइयों में भी करंट से जानमाल का नुकसान हो रहा है। औद्योगिक इकाइयों में करंट लगने से कुल 175 लोगों की जान गई, जबकि 66 जख्मी हुए। गुजरात में 35, महाराष्ट्र में 54, मेघालय में 16, राजस्थान में 10, तामिलनाडु में तीन और रेलवे में करंट से सात लोगों की मौत हो गई।
साउथ बिहार पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक, महेंद्र कुमार ने कहा कि पूर्व के वर्षों की तुलना में बिहार में बिजली से होने वाले हादसों में कमी आई है। जर्जर एलटी व एचटी तारों को बदलने के लिए 3802.63 करोड़ खर्च किए गए। 33 केवी के 2730 सर्किट किलोमीटर, 11केवी में 36 हजार 860 सर्किट किलोमीटर और लो-टेंशन के 47 हजार 744 सर्किट किलोमीटर यानी कुल 87 हजार 334 सर्किट किमी तार बदले गए। इससे विद्युत स्पर्शाघात की घटनाएं लगभग नगण्य हो गई हैं।